पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप से वंचित हैं लाखों आदिवासी दलित विद्यार्थी

पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप से वंचित हैं लाखों आदिवासी दलित विद्यार्थी
रांची, 2 जनवरी 2017 : कैडर कैम्पेन 2201 के अभय खाखा, राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान के सुनील मिंज और स्वाधिकार झारखंड के मिथिलेश कुमार ने संयुक्त रूप से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि प्रवेषिकोत्तर छात्रवृति (पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति) की योजना निःसंदेह दलित एवं आदिवासी छात्र-छात्राओं के उच्च शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण योजना है जिसकी शुरूआत डा. भीमराव आंबेडकर के अथक प्रयासों से सन 1944 में किया गया था। इस योजना के तहत इंटर से स्नातकोत्तर तक सभी आदिवासी एवं दलित विद्यार्थी को जिनके परिवार की वार्षिक आय 5 लाख रुपये से कम है को उपलब्ध करायी जानी है। वर्ष 2015-16 में 33 हजार 733 दलित एवं 90 हजार से अधिक आदिवासी विद्याार्थियों ने झारखंड राज्य में इस छात्रवृति हेतू आवेदन किया था। इस छात्रवृति के तहत काॅलेज की फीस, निरवहन भत्ता, छात्रावास षुल्क आदि हेतू खर्चे दिये जाने का प्रावधान है। पूर्व में छात्रवृति का भुगतान कल्याण विभाग द्वारा कालेज को किया जाता था, पर डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर योजना के तहत वर्ष 2014-2015 से छात्रवृति आवेदन की पूरी प्रक्रिया ई-कल्याण वेवसाइट पर आॅनलाइन की जाती है और भुगतान विद्याार्थियों के बैंक खाते में किया जाता है।
पिछले दो वर्षों से इस पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति के आवेदन एवं भुगतान में गंभीर अनियमितताएं हो रही है जिसका सीधा प्रभाव लाखों गरीब दलित एवं आदिवासी विद्यार्थियों के उच्च षिक्षा पर पड़ रहा है। सूचना अधिकार के तहत हमें जानकारी मिली है कि अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए राज्य सरकार ने 48 करोड़ की मांग केंद्र सरकार से रखी थी, जिसमें से मात्र 9 करोड़ रुपये ही राज्य सरकार को प्राप्त हुए हैं, जबकि 39 करोड़ की राशि अभी तक बकाया है, जो छात्र-छात्राओं को अप्राप्त है। हमारा अध्ययन बताता है कि छात्रवृति में विलंब के कारण हजारों दलित विद्यार्थियांे को अपनी उच्च षिक्षा से वंचित होना पड़ा है। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में 83 हजार अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति प्रदान करने हेतू 90 करोड़ की अवष्यकता थी, पर केंद्रीय अनुसूचित जनजाति मंत्रालय द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार झारखंड सरकार की ओर से विलंब से राशि का मांग पत्र रखी गयी, जिसके वजह से लाखों आदिवासी छात्र-छात्राओं को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
हमने झारखंड बजट अध्ययन से पाया है कि झारखंड राज्य सरकार को केंद्र सरकार से पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति हेतू वर्ष 2016-17 में 180 करोड़ का प्रस्ताव भेजा जाना था. पर वर्तमान स्थिति में पिछले दो वर्ष का बकाया छात्रवृति राशि का भुगतान हजारों छात्र-छात्राओं को नहीं हुआ है।
हमने अध्ययन में पाया है कि छात्रवृति आवेदन प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं हो रही हैं। राज्य के कई जिलों में छात्र-छात्राओं को आय-जाति, आवास और बोनाफाइट प्रमाण पत्र बनाने हेतू अधिकारियों व काॅलेज प्रबंधन द्वारा जान बुझकर विलंब किया जा रहा है, जिसके कारण निर्धारित समय सीमा 22 दिसंबर तक भी हजारों छात्र-छात्राएं आवेदन प्रपत्र नहीं भर पायें हैं।