झारखण्ड में 1999 के बाद खरीदी गयी आदिवासी जमीन अवैध

रांची, 5 मार्च 2016 :  राज्य सरकार ने शुक्रवार को विधानसभा में माना कि 1999 के बाद आदिवासियों को कंपन्सेशन (मुआवजा) देकर उनकी जितनी भी जमीन का हस्तांतरण हुआ है, सभी अवैध है़   झामुमो विधायक चमरा लिंडा के सवाल पर भू-राजस्व मंत्री अमर बाउरी ने सदन में कहा : सरकार कानून को लागू कराने के लिए हर न्याय संगत कार्रवाई करेगी़   1999 से लेकर 2015 तक जितने भी एसएआर अफसर रहे हैं, उन पर कार्रवाई होगी़  ऐसी जमीन को चिह्नित करने और उसे वापस कराने के लिए सरकार टॉस्क फोर्स बनाने पर भी विचार कर रही है़. 1999 में खत्म हो गयी थी वैधता: चमरा लिंडा ने विधानसभा में सवाल उठाया था कि सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए में प्रावधान है कि बिहार शिड्यूल एरिया रेगुलेशन एक्ट, 1969 लागू होने से पूर्व आदिवासी जमीन हस्तांतरित कर लेनेवाले ने उस पर मकान या दूसरी चीज का निर्माण कर लिया है, तो उसे 30 वर्ष के अंदर मुआवजा के साथ वैधता दी जा सकती है़  यह वैधता 1999 में खत्म हो गयी़   इसके बाद बने सारे मकान अवैध है़ं  उनका कहना था कि जमीन का हस्तांतरण अवैध तरीके से करनेवाले एसएआर अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो़  जमीन के मामले में अंतिम जिम्मेवारी उपायुक्त की है़   उपायुक्त पर भी कार्रवाई हो़  चमरा लिंडा के सवाल पर मंत्री अमर बाउरी ने कहा : सब पर न्यायसंगत कार्रवाई होगी़  विपक्ष की ओर से मामला उठाये जाने पर मंत्री ने कहा कि ऐसी जमीन को चिह्नित करने और आदिवासियों को वापस करने को लेकर सरकार टास्क फोर्स बनाने पर विचार करेगी़ ( sabhar PK)