झारखण्ड में तेज होती उलगुलानी चिंगारी की लपटें

“गैर- राजनीतिक ‘आदिवासी महारैली’ में उमड़ा जनसैलाब,स्थानीय नीति तथा सीएनटी-एसपीटी में संशोधन के विरोध में भरी हुंकार ”
झारखण्ड में राज्य सरकार द्वारा घोषित नयी स्थानीय नीति तथा सीएनटी-एसपीटी में किये गये संशोधन के प्रस्तावकेखिलाफ 15 सितम्बर 2016 दिन गुरुवार को राज्य की राजधानीरांची के मोरहाबादी मैदानमें आदिवासी संगठनों द्वाराआयोजितगैर-राजनीतिक‘आदिवासी महारैली’ में 50 हज़ार से भी अधिक की उमड़ी भारी जनसैलाब की हुंकार,राज्य सरकार के साथ-साथ यहाँ के राजनीतिक दलों के होश उड़ाने के लिए काफी है. इस महारैली में राज्य के विभिन्न जिलो से लोग पारंपरिक हथियारों के साथ पहुचे थे. इतनी भारी संख्यामेंशहर के अलग-अलग रास्तो से होते हुए ‘आदिवासी महारैली’ में शामिल होने मोराबादी मैदान पहुचेलोगोंनेअपनीसंस्कृति का पहचान देते हुएप्रदर्शन को शंतिपूर्ण बनाये रखा. बिना किसी आधुनिक प्रचार के माध्यमो का इस्तेमाल किये इतनी बड़ी संख्या में लोगों का राजधानी पहुंचना इस बात का संकेत देता है कि राज्य के आदिवासी संगठनों का जमीनी पकड़ काफी मजबूत है तथा लोगों से सीधा संवादकरने में भरोसा रखते है. राज्य के किसी भी बड़े नेता के बगैरमहारैली में उमड़ा भारी जनसैलाब, एक्टमेंसंशोधन के खिलाफ लोगों में भारी आक्रोश का प्रतिक था. इस‘आदिवासी महारैली’ को आयोजित करने तथा इसे सफल बनाने में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच तथा अन्य आदिवासी संगठनों का अहम योगदान था.
पक्ष-विपक्ष की कॉरपोरेट व सत्ता साधितराजनीतिक चाल से आदिवासी-मूलवासी नाराज आदिवासी संगठनों द्वारा आयोजित इस‘आदिवासी महारैली’ से राज्य के सभी राजनीतिक दलों तथा राज्य के चर्चित आदिवासी नेताओ को दूर रखने के बावजूद, भारी संख्या में लोगों की उपस्थिति के साथ महारैली को सफल बना कर उन्हें साफ संकेत दे दिया है कि जन सरोकार के मुद्दे से इतर सिर्फ सत्ता के समीकरणों के बीचराजनीति करना आपके राजनीतिक भविष्यकेलिए खतरा है. झारखंडी मुद्दों परपक्ष-विपक्ष दोनों कि राजनीति ने राज्य के लोगों को काफी निराश किया है. झारखण्ड में पक्ष-विपक्ष की कॉरपोरेट व सत्ता साधित राजनीतिक चाल से नाराज लोगों ने अबअपनी अस्तित्व को बचाने के लिए राजनीतिक दलों से इतर संगठितहो रहे है, यह रैली भी इसी का नतीजा है. गैर- राजनीतिक ‘आदिवासी महारैली’ में उमड़ी 50 हज़ार से अधिक कीभीड़, विपक्षी दलों के बड़े आदिवासी नेताओ को शरमाने तथा इर्ष्या से भरने के लिए काफी हैl यहमहारैली विपक्ष को भी नये सिरे से आत्मचिंतन करने पर मजबूर करेगी. सरकार के खिलाफ बिना विपक्ष के सहयोग से आदिवासी संगठनों द्वारा भारी जनसमर्थन जुटाना तथा इतनी बड़ी रैली को सफल बना कर, इस मुद्दे पर जितना दबाव अभी तक विपक्ष, सरकार पर नहीबना पायी थी, उससे कहीं अधिक दबाव इन गैर-राजनीतिकआदिवासीकार्यकर्ताओ ने बना दिया है तथा साबित कर दिया है कि झारखण्ड में विपक्ष जन मुद्दों की लड़ाई पर खरा नही उतर रही है और बेहद कमजोर है. क्या झारखण्ड के स्थापित नेताओ के झारखण्ड विरोधी राजनीतिक चाल से नाराजआदिवासी-मूलवासियों के बीच से अब कोई बड़े व संगठित नेतृत्व के रूप में कोई राजनीतिक विकल्प उभरेगा ? क्या यह विशाल महारैली झारखण्ड में नयी राजनीतिक विकल्प के लिए बीज का काम करेगी ? ये आने वाला वक्त ही बतायेगा परन्तु इस रैली कीसफलता यहसंकेत कर रही है कि अगर सरकार, झारखंडी मुद्दों परआदिवासी-मूलवासियों को विश्वास में लिए बगैर कोई निर्णय लेती है तो अब वे चुप नही बैठेंगेl राज्य सरकार द्वारा पहले घोषित नयी स्थानीय नीति तथा इसके बाद सीएनटी-एसपीटी में किये गये संशोधन के प्रस्तावके खिलाफ जो आदिवासी-मूलवासियों में भारी आक्रोश है, इस ओर संकेत कर रही हैकि झारखण्ड में उल्गुलानी चिंगारी की लपटे दिनों-दिन तेज हो रही है. आदिवासी संगठनों ने इस इस महारैली से राजनीतिक दलों तथा नेताओ को दूर रख कर साफ-साफ बता दिया है कि सरकार या सत्ताधारी दलों से नाराज तो है हि, अब विपक्षी दलों पर भी भरोसा नही रहा है. सिर्फसत्ता के लिए वोट बैंक की राजनीति करने वाली झारखण्ड नामधारी पार्टियों को भी आदिवासी संगठनों ने साफ संदेश दे दिया है कि अगर आप हमारी लड़ाई को इमानदारी पूर्वक नही लड़ेंगे तो हम आपके बगैर भी इस लड़ाई को लड़ने में सक्षम है lबेहतर होगा राज्य सरकार झारखंड को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाये बगैर आदिवासी-मूलवासीयों को विश्वास में लेकर जल्द से जल्द राज्य हित में तमाम संवेदनशीलमुद्दों पर उचित निर्णय ले.
0 हरीश कुमार