जांबाज धनंजय के किस्से अब सबकी जुबान पर, अडाणी फाउंडेशन से मिली संजीवनी तो चहक उठे दंपती

नारायण विश्वकर्मा

रांची : हौसलों की ऊंची उड़ान ने मांझी धनंजय हांसदा को गोड्डा से ग्वालियर तक पहुंचा दिया। परवाज नहीं खोनेवाले धनंजय की जांबाजी के चर्चे अब देश भर में हो रही है. उनके जज्बे को सराहा जा रहा है। ग्वालियर में अपनी पत्नी सोनी हेम्ब्रम के साथ रह रहे हैं. सोनी वहां डीएलईडी की एग्जाम दे रही है. अडाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन डॉ. प्रीति अडाणी का साथ मिलने के बाद तो मानो उसके हौसलों को पंख लग गया हो. आइये जानते हैं धनंजय की बचपन से लेकर जवानी तक की संघर्षगाथा।

धनंजय गोड्डा से पत्नी को स्कूटी पर लेकर जब चला था, तो उसने यह नहीं सोचा था कि लौटेंगे कैसे? क्योंकि ग्वालियर में रहने में ही उसके सारे पैसे खर्च हो जाते. लेकिन इसी बीच डॉ. प्रीति अडाणी को खबर मिली, और फिर उसके बाद एक झटके में सबकुछ ठीक हो गया.

धनंजय की कहानी में उसके बचपन को कभी खिलौना नहीं नसीब नहीं हुआ, बल्कि उसके नाजुक कंधे पर परिवार की जिम्मेवारी का बोझ मिला.
बोकारो स्टील सेक्टर-11 डी के भतुआ गांव के रहनेवाले मांझी धनंजय हांसदा ने अपने बचपन से लेकर जवानी तक की संघर्षगाथा सुनायी है। पिता बीएसएल में काम करते थे, लेकिन मानसिक विक्षिप्तता के कारण उनकी नौकरी चली गई। 14 साल की उम्र में ही दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए धनंजय पुणे आ गया। वहां प्रतिदिन 80 रुपये मिलते थे। इसके बाद गुजरात के गांधीधाम में कुछ दिन कैंटीन में काम किया, लेकिन कंपनी के एचआर ने कम उम्र होने के कारण काम से निकाल दिया। उस दौरान उसे बाथरूम में छिपा दिया जाता था। 6 महीने तक वहीं कैंटीन में उसे मुफ्त में खाना मिलता था। उसने बताया कि तीन साल बाद अपने घर बोकारो आया। बोकारो में एक साल तक रहने के बाद तीन भाई और दो बहनों की परवरिश के लिए धनंजय को फिर उत्तराखंड के टिहरी-कोटेश्वर में डैम निर्माण में मजदूरी करने चला गया। वहां पहाड़ गिर जाने के कारण वहां से वह जान बचाकर भागा।

हरिद्वार में लुट गया धनंजय

धनंजय कहता है उसे डर नहीं लगता है लेकिन जुनूनी है। बगैर टिकट ट्रेन से धनबाद पहुंचा। टीटीई ने पकड़ा तो साफ कह दिया कि मुझे हरिद्वार में दो लोगों ने नशे की चाय पिलाकर मेरे 8000 रुपये लूट लिए हैं। टीटीई से कहा कि मुझे बोकारो जाना है और जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं है। टीटीई को उसकी बातों पर यकीन आ गया। अंत में टीटीई ने कहा कि ये लो सौ रुपये, 50 रुपये में कुछ खा लेना और 50 रुपये में बोकारो चले जाना। धनंजय बताता है कि उसने मात्र 20 रुपये खर्चे किये और पैदल ही धनबाद से बोकारो चल दिया। तीन घंटे में वह घर बोकारो पहुंचा।

किस्मत में नहीं थी पढ़ाई-लिखाई

धनंजय बताता है कि घरवाले ने जिद की तो बोकारो में फिर पढ़ाई शुरू की लेकिन उसका पढ़ाई में मन नहीं लगा। किसी तरह नौवीं क्लास तक पहुंचा। लेकिन घर की माली हालत ने उसे पढ़ने नहीं दे रहा था। मजबूरी ने फिर उसे अहमदाबाद पहुंचा दिया। यहां उसे 5000 रुपये मिलते थे। यहां डेढ़ साल तक काम किया। इसके बाद बड़ोदरा में जिंदल कंपनी में 4 साल काम किया। अभी वह गुजरात के अमरैली जिले में सिनटैक्स धागा कंपनी में काम कर रहा है। यहां वो खाना बनाने का काम करता है।

गुजरात में धागा कंपनी में करता है काम

धनंजय को धागा कंपनी में 8000 रुपये महीने मिलते हैं। इस बीच 2017 में पिता का और 2018 में माता का देहांत हो गया। दिसंबर 2019 में धनंजय की गोड्डा के गंगटा गांव में शादी हो गई। अपनी शादी के बाद वह जनवरी में पत्नी को लेकर अमरैली चला गया। 24 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद कंपनी उसे आधे महीने का ही पगार देती थी। मात्र चार हजार रुपये घर और पत्नी का बोझ उठाना मुश्किल था। जून महीने में किसी तरह से कंपनी उसके पगार के पैसे से अहमदाबाद से हावड़ा तक का ट्रेन में टिकट बुक करवा दी। फिर हावड़ा से कार बुक करवा कर गोड्डा के गंगटा पहुंचा। गोड्डा में क्वारांटाइन में रहना पड़ा।

जीवटता ने साथ निभाया

धनंजय अब बिल्कुल टूट चुका था। लेकिन हिम्मत नहीं हारी थी। इस बीच सारे पैसे खर्च हो गए थे। पत्नी 6 माह की गर्भवती है। गंगटा गांव में रिश्तेदार ने चावल दिया और दूसरे ने राशन दिलवा दिया। किसी तरह दो माह बीते तो पत्नी ने कहा कि कहीं काम ढूंढ़ों। धनंजय ने जवाब दिया कि अभी काम कहां मिल रहा है। फिर भी उसने मामा श्वसुर के यहां राजमिस्त्री के साथ मजदूरी का काम किया। किसी तरह से राशन का पैसा चुकाया।

चंदा मांग कर किया भाई का दाह-संस्कार

धनंजय की हालत देखिये कि 20 अगस्त को उसे पता चला कि उसका छोटा भाई लापता हो गया है। 23 अगस्त को उसकी लाश मिली। 24 अगस्त को भाई की लाश मिलने की खबर अखबारों में छपी। लाश बरामद होने के बाद उसी दिन चंदा मांग कर उसने भाई का दाह-संस्कार किया। अब उसके बोकारो के घर में ताला लटका हुआ है। छोटी बहन की किसी तरह से उसने शादी कर दी है।

फिर बना ग्वालियर जाने का प्लान

धनंजय किसी तरह 26 अगस्त को गोड्डा पहुंचा। पत्नी ने कहा कि डिप्लोमा इन एलीमेंटरी की परीक्षा में उसे ग्वालियर जाना है। घर में पैसे नहीं हैं। अंत में दोनों ने विचार किया कि हर हाल में परीक्षा देने जाना है। 27 अगस्त को पत्नी सोनी ने अपने जेवर स्कूटी की डिकी में रखकर पति को लेकर सोनार के यहां पहुंची। सोनार से जेवर के दस हजार रुपये मिले। उसी पैसे धनंजय ने पत्नी को स्कूटी में बिठाकर अंजाम से बेखबर ग्वालियर चल दिया। उसने बताया कि गोड्डा से चलने से पूर्व गोड्डा थाने में जाकर इसकी सूचना दी। थाने में कहा गया कि जा सकते हो, कोई दिक्कत नहीं होगी।

फिर स्कूटी से तीन दिन का वो सफर

धनंजय हांसदा अपनी 6 माह की गर्भवती पत्नी को डीएड की परीक्षा दिलाने 1176 किमी दूर मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्कूटी चलाकर पहुंच गया। वह कहता है कि रास्ते में उसे कोई परेशानी नहीं हुई। अब तो दंपती हवाई जहाज से घर लौटेंगे। उन्हें हवाई सफर के जरिए घर पहुंचाने का जिम्मा अडाणी फाउंडेशन ने लिया है। फाउंडेशन ने हवाई यात्रा के लिए प्लेन के टिकट भी भेज दिए हैं। हालांकि, फाउंडेशन ने ग्वालियर से सीधे झारखंड तक सीधी फ्लाइट न होने के कारण 16 सितंबर के टिकट बुक कराए हैं। दोनों ग्वालियर से हैदराबाद होते हुए रांची एयरपोर्ट पहुंचेंगे। रांची हवाई अड्डे से उन्हें बस से गोड्डा तक पहुंचाया जाएगा। खास बात यह है कि धनंजय की स्कूटी भी रांची तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अडाणी फाउंडेशन ने ही ली है।

डॉ. प्रीति अडाणी के निर्देश पर सब इंतजाम हुआ

अडाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन डॉ. प्रीति अडाणी के मुताबिक, उन्होंने दंपती के साहसिक सफर की खबरें पढ़ी तो उनका दिल पसीज गया। इसके बाद उन्होंने फाउंडेशन के अधिकारियों को हवाईयात्रा का इंतजाम कराने के निर्देश दिए। उन्होंने दंपती को बगैर कोई कष्ट के गोड्डा तक भेजने का निर्देश दिया है। इसके बाद उन्हें विमान के टिकट भेजे गए। बता दें कि डॉ. प्रीति अडाणी को जैसे ही सोनी हेम्बरम के बारे ये पता चला कि वह 6 माह की गर्भवती की स्थिति में स्कूटी से ग्वालियर परीक्षा देने जा रही है, यह जानने के बाद उन्होंने फौरन अपने अधिकारियों से संपर्क कर यथाशीघ्र दंपती को तत्काल राहत पहुंचाने का निर्देश दिया। उन्होंने अपनी संवेदना जताते हुए अधिकारियों से कहा है कि चूंकि सोनी गर्भवती है, इसलिए उसे हर हाल में सारी सुविधाओं के साथ गोड्डा भेजा जाए। 16 सितंबर को दंपती रांची एयरपोर्ट पहुंचेंगे। यहां से दोनों को सहूलियत के साथ गोड्डा के लिए रवानगी होगी।

कल्याणकारी योजनाओं पर काम करता है अडाणी फाउंडेशन

उल्लेखनीय है कि अडाणी फाउंडेशन सीएसआर के तहत गोड्डा में कई कल्याणकारी योजनाएं चला रहा है। विशेषकर महिलाओं के लिए फूलो झानू सक्षम आजीविका सखी मंडल के जरिए 1600 से अधिक महिलाओं को सिलाई-बुनाई से जोड़ा गया है। अडाणी फाउंडेशन के बैनर तले महिलाओं को कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। अडाणी फाउंडेशन सीएसआर के तहत शिक्षा, आजीविका, स्वास्थ्य, ग्रामीण आधारभूत संरचनाओं को लेकर पिछले चार सालों से लोक कल्याणकारी कार्यों पर फोकस किया है। अडाणी फाउंडेशन द्वारा लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रोत्साहित करना, उन्हें किताबें मुहैया कराना, परीक्षा में बेहतर करनेवाले स्टूडेंट्स को पुरस्कृत करने आदि का काम किया जा रहा है। इन कामों को सुचारु ढंग से चलाने के लिए अडाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन डॉ. प्रीति अडाणी बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। वह इसकी म़ॉनिटरिंग करती रहती हैं। बहरहाल डॉ. अडाणी का सहयोग धनंजय के लिए रामवाण साबित हुआ है। अब सबको 16 सितंबर का इंतजार है, जब दंपती रांची हवाई अड्डे पर लैंडिंग करेंगे.