**रिम्स में नियुक्ति घोटाले की खुलती रही परतें** **पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के पीए की बेटी बाहरी होने के बावजूद रिसेप्सनिस्ट बन गयी** **8 साल से रिम्स में काम करनेवाली रिंकी बाहर हो गई* *

नारायण विश्वकर्मा / संपादक

रिम्स में थर्ड-फोर्थ ग्रेड में हुई नियुक्तियों की गड़बड़ियों की एक-एक कर परतें अब खुलने लगी हैं। इसके कारण रिम्स प्रबंधन में खदबदाहट है। गड़बड़ियों का खुलासा होने पर रिम्स निदेशक दिनेश सिंह ने मीडिया से नियुक्ति सूची को पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी से अनुमोदित प्राप्त बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया है। जबकि पूर्व मंत्री ने कहा था कि उन्हें बायपास कर नियुक्ति सूची जारी की गयी थी। बाद में पूर्व मंत्री ने इसपर रोक तो लगायी थी, पर फिर चंद दिनों बाद सबकुछ कथित रूप से ठीक मान कर हरी झंडी क्यों दे दी? यह सवाल रिम्स परिसर गूंज रहा है. हां एक फर्क यह आया कि कुछ लोगों से दो साल का बांड भरा कर (इस संदर्भ में 13 जून को ‘रांची दर्पण’ व अन्य न्यूज पोर्टल में आयी खबर में जिक्र है) सूची जारी कर दी गयी। क्या यह माना जाये कि इस नियुक्ति घोटाले में रिम्स प्रबंधन और पूर्व मंत्री जिम्मेवार हैं?
ये तो अब हेमंत सरकार को तय करना है. जांच कमेटी ने 6 जून को स्वास्थ्य विभाग को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी है। अब जांच रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के पास पहुंच गयी है।

रिम्स में कार्यरत उम्मीदवारों की अनदेखी क्यों की गयी?

मिली जानकारी के अनुसार रिम्स में 5 से 15 से साल से आउट सोर्सिंग, दैनिक वेतनभोगी और संविदा पर कार्यरत रिम्सकर्मियों के पास अहर्ता रहते हुए भी उन्हें नियुक्ति के काबिल नहीं समझा गया। ऐसे कर्मियों की रिम्स में संख्या सौ से अधिक है। इन्हें हर हाल में नियुक्तियों में प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी। इसके बाद भी रिम्स के निदेशक फरमाते हैं कि सब कुछ नियम के तहत हुआ है।

रिंकी कुमारी के साथ हुई नाइंसाफी

एक ऐसी ही दैनिक वेतनभोगी रिंकी कुमारी कम्प्यूटर आॅपरेटर का मामला सामने आया है। रिंकी कुमारी को सारी अहर्ता पूरी करने के बाद भी अयोग्य मान लिया गया। रिंकी कुमारी रिसेप्सनिस्ट की उम्मीदवार थी। स्क्रूटनी की लिस्ट में इनका नाम क्रमांक 12 पर अंकित था।


रिंकी कुमारी ने दैनिक वेतनभोगी के रूप में 2012 से कम्प्यूटर आॅपरेटर के पद पर कार्यरत है। 2013 से रिम्स के डिप्टी सुपरिटेंडेंट के आॅफिस में अभी वह काम कर रही है। इनके पति सरजू प्रसाद रिम्स में संविदाकर्मी के रूप में बहाल हुए थे। पति के निधन के बाद उनकी पत्नी रिंकी कुमारी को दैनिक वेतनभोगी के रूप में बहाल किया गया। उनके पति के साथ काम करनेवाले 2014 में ही स्थायी हो गये हैं।
रिंकी का दुर्भाग्य देखिये कि रिम्स में काम करने के आठ साल बाद भी इनकी नियुक्ति नहीं हुई। रिम्स में रिसेप्सनिस्ट के तीन पद पर नियुक्ति होनी थी। इनमें दो जेनरल और एक एसटी के पद सृजित थे।

रिम्स में ही कार्यरत सुनीता भदोरिया और दिनेश कच्छप की नियुक्ति कर ली गयी। लेकिन रिम्स में कार्यरत रिंकी कुमारी के स्थान पर झारखंड से बाहर की रहनेवाली श्वेता आर्या को रिसेप्सनिस्ट बना दिया गया। श्वेता आर्या पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी के पीए जेपी सिंह की बेटी बतायी जाती है। रिंकी कुमारी स्थानीय होने के बावजूद छंट गयी और श्वेता आर्या बाहरी होते हुए भी नियुक्त हो गयीं।
रिंकी कुमारी ने बाद में लिपिक के पद पर बहाल करने के लिए रिम्स के निदेशक अपने समायोजन के लिए आवेदन दिया. उस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। उसे सिर्फ आश्वासन मिला है।


जाहिर इस प्रकरण से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री इससे अनजान नहीं होंगे, क्योंकि श्वेता आर्या उनके पीए की बेटी है।
इसी तरह से 2008 से रिम्स में संविदा के रूप में आर्टिस्ट के पद पर कार्यरत अवधेश राम के बदले महाराष्ट्र के रहनेवाले सुभाष पंजाबरोव टायडे को नियुक्त कर लिया गया है।
इस तरह के अभी और भी किस्से हैं, जो रिम्स परिसर में सुनाई दे रहे हैं। इसपर फिर चर्चा होगी. क्योंकि रिम्स में नियुक्ति घोटाले की कहानी अभी बाकी है.
ऐसे भुक्तभोगी लोगों को हेमंत सरकार से बड़ी उम्मीद है। उन्हें लगता है उनके साथ इंसाफ होगा। अब देखना है कि झारखंड का स्वास्थ्य विभाग क्या रुख अपनाता है। अभी हमें इसका इंतजार करना होगा।