मासूमियत की हत्या

नीरज कुमार महंत

जैसा कि हम सब जानते हैं कि आजकल लड़कों और लड़कियों में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं माना जाता। लाखों लोग इस बात से सहमति ज़रूर रखते होंगे पर हमारा देश करोड़ों की आबादी वाला देश है और ऐसे में आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा है।

इसी भेद भाव से पनपती है विकृत मानसिकता और आज के समय में ऐसे विकृत मानसिकता के लोग कितने हैं ये बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना कि चावल में कंकड़ ढूंढना। इसी मानसिकता का जीता जागता उदाहरण है धनबाद जिला के दक्षिणी टूंडी के कारीगरडीह में घटी ये घटना। एक मासूम बच्ची जिसकी उम्र महज़ 2 साल है उसके साथ दुष्कर्म जैसी अमानवीय हरकत की गई है।

जी हां महज़ दो साल। कितनी बड़ी होती है दो साल की बच्ची? इतनी कि किसी की नज़र उसपर पड़े तो उसे देखकर प्यार आ जाए। जो भी उसको देखे उसकी आंखों में सिर्फ़ और सिर्फ़ लाड और खुशी ही झलके। जिससे भी तुतला कर बात करे उसका मन मोह ले। जिसकी हंसी से सारी थकान दूर हो जाए।

ये सारे शब्द उस छोटी सी बच्ची के मासूम होने की गवाही देते हैं, जिसकी मासूमियत हममें से ही एक इंसान जैसे दिखने वाले हैवान ने छीन ली है। ये लोग कुछ अलग नहीं दिखते हैं, ये हममें से ही एक हैं जो हमारे ही बीच किसी शातिर शिकारी की तरह छिपे होते हैं। जिसे जब भी मौका मिलता है अपना असली रूप दिखा देता है। इंसानी शक्ल में ये भेड़िए कभी भी किसी से बिना डरे इंसानियत को शर्मसार करने का कोई मौका नहीं जाने देते।

इन्हें ना कानून का डर होता है ना इंसानियत की फ़िक्र। ध्यान में‌ हो कि इसी साल 20 मार्च को ही निर्भया के दोषियों को फांसी दी गई है, जिसके बाद ऐसी उम्मीद लगाई जा रही थी कि यह एक कड़ा जवाब होगा उन लोगों को जिनके मन में कभी ऐसी घिनौनी हरकत की जड़ पनपी हो।

हमारे कानून व्यवस्था में भी आए दिन सुधार होते रहते हैं लेकिन ऐसी भी स्थिति देखने को मिलेगी ये किसने सोचा था। कानून के मुताबिक जो भी पीड़ित हैं उसकी हालत या तो बहुत ज़्यादा नाज़ुक हो या फ़िर उसने अपने प्राण त्याग दिए हों इन्हीं दो परिस्थितियों में दोषी को फांसी की सज़ा होती है और बाकियों को या तो 7 साल, 10 साल और उम्रकैद की सज़ा होती है।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि पीड़िता के सिर्फ़ मरने कि स्थिति या मरने के बाद ही फांसी क्यों ?
टूंडी जैसी घटनाएं और भी बहुत हैं जिनके दोषियों को फांसी क्यों नहीं?
कोई भी बलात्कारी किसी की उम्र देखकर बलात्कार नहीं करता तो उन लोगों को उम्र के हिसाब से सज़ा क्यों ?
सवाल बहुत सारे होंगे पर जवाब में सिर्फ़ लाचारी ही हाथ लगती है।

ऐसे में आप और हम बस यही कर सकते हैं कि एक संकल्प लें और बच्चों को कभी अकेला न छोड़ें। क्योंकि इस तरह के अधिकांश मामलों में ज़्यादातर लोग या तो अपने या फ़िर जान पहचान के ही दोषी पाए जाते हैं।