निर्दयता की पराकाष्ठा

नीरज कुमार महंत

पिछले दिनों एक ख़बर मिली कि एक गर्भवती हथिनी की बड़ी निर्दयता से हत्या कर दी गई है। ये हत्या कैसे की गई इसकी जानकारी पढ़ने के बाद मन इतना दुखी हो जाता है कि सच मानिए, मानवता पर से भरोसा उठ जाने जैसा महसूस होता है।

लेकिन किसी एक घटना को लेकर ऐसा कहना कि मानवता से भरोसा उठ गया है ‌ये थोड़ी जल्दबाज़ी होगी। पर थोड़ी खोजबीन करने पर पता चला कि ऐसा आज पहली बार नहीं हुआ है। ऐसी घटनाएं सालों से हो रही हैं और कुछ दिन सुर्खियों में रहने के बाद ठंडे बस्ते में चली जाती हैं।

साल 2016 के अगस्त महीने में पाकिस्तान में भी एक ऐसा मामला सामने आया था। जहां मांस के टुकड़ों में ज़हर मिला कर कुत्तों को खिला दिया गया था, जिससे करीबन 800 से भी ज़्यादा आवारा कुत्ते मरे थे।

जून 2016 में तामिलनाडु में भी ऐसी ही एक घटना सामने आई थी। जहां एक आदमी ने 80 कुत्तों को ज़हर दे कर मारने के बाद उन्हें जला भी दिया गया था।

केरल में भी साल 2015 में एक व्यक्ति द्वारा ज़हर दे कर 130 कुत्तों को मारने की बात सामने आई थी। 43 साल का यह व्यक्ति एक आॅटोरिक्शा चालक था। कन्नूर और एर्नाकुलम जिलों में कुत्तों की लाशों के ढेर की तस्वीरें भी सामने आई थी।

जानवर बेज़बान होते हैं, और इंसानों की तरह अपने जज़्बात नहीं बयां कर सकते। इतनी सी बात लोगों को समझने में क्या दिक्कत आती है ?


पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11(1)सी के तहत, अगर किसी भी जानवर को जहरीले इंजेक्शन या किसी अन्य क्रूर तरीके से मारा जाता है, तो वह कानूनन अपराध है। इसके लिए सजा के तौर पर जेल और जुर्माना का प्रावधान है। बावजूद इसके जब इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं‌ तो इसे निर्दयता की‌ पराकाष्ठा कहना ज़रूरी हो जाता है।