झारखंड में कोरोना की धीमी पड़ती रफ्तार,

नारायण विश्वकर्मा / संपादक

झारखंड में कोरोना काल में मजदूरों का आना जारी है, लेकिन कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण की रफ्तार में कमी आना भी जारी है। झारखंड में कोरोना को हरानेवालों की संख्या में हुए इजाफे से ये भी पता चलता है कि यहां के लोगों की इम्यूनिटी तगड़ी है। यही कारण है स्वस्थ होनेवालों की संख्या एक हजार पार कर गयी है। अन्य राज्यों की तुलना में झारखंड सुखद स्थिति में जरूर है। तीन महीने में अब तक 9 लोगों की मौत हुई है।
ढाई महीने में ऐसा पहली बार हुआ है, जब स्वस्थ होनेवाले कुल संक्रमित मरीजों की संख्या से अधिक हो गयी है। अगर मरीजों के स्वस्थ होने का सिलसिला कायम रहा तो अगले कुछ दिनों में 90 प्रतिशत से अधिक मरीज स्वस्थ हो चुके होंगे। यहां शुरू से ही यहां मृत्यु दर कम रही है. मरीजों के स्वस्थ होने की दर अब 52 प्रतिशत को पार कर गई है.
झारखंड का स्वास्थ्य तंत्र कभी मजबूत नहीं रहा। यहां के तीनों बड़े अस्पताल रिम्स, एमजीएम और पीएमसीएच, धनबाद अपने बदइंतजामी को लेकर सुर्खियों में रहता है। लेकिन अपने सीमित संसाधनों और स्वास्थ्यकर्मियों की बदौलत बेहतर परिणाम सामने आया है।
कोरोना कालखंड में रिम्स को जरूर याद किया जायेगा. कोरोना को लेकर रिम्स पर सबसे अधिक भार है.

प्राइवेट अस्पतालों के प्रबंधनों की बेरुखी

हालांकि झारखंड के प्राइवेट अस्पतालों के रुख ने बेहद निराश किया है. इसीलिए स्वास्थ्य विभाग को अंततः निजी अस्पतालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालात ये रहे कि दूसरी बीमारी के इलाज के लिए पहुंचे मरीजों में कोरोना पाये जाने पर रेफर कर देने के कई केस सामने आये. अंततः स्वास्थ्य सचिव डाॅ. नितिन मदन कुलकर्णी को निजी अस्पतालों के अड़ियल रवैये को देखते हुए सभी सिविल सर्जनों को अनिवार्य रूप से गाइडलाइन जारी करनी पड़ी. कहा गया कि जिला प्रशासन को सूचना दिये बिना किया संभावित कोरोना संक्रमित मरीज को डिस्चार्ज नहीं किया जायेगा। अब निजी अस्पतालों को आइसोलेशन वार्ड और कम से कम दो वेंटिलेटर रखना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बावजूद निजी अस्पताल के प्रबंधनों के चाल-चरित्र में कोई बदलाव आ जायेगा, यह दावा करना मुश्किल है.
राज्य सरकार द्वारा कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन तोड़ने और फैलाव को रोकने के लिए ऐहतियातन जो कदम उठाये गये, उसका सुपरिणाम भी दिखने लगा है। शुरू में ये कहा जा रहा था कि बाहर से आनेवाले मजदूरों के कारण कोरोना संक्रमितों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होगी, लेकिन वैसा हुआ नहीं। बाहर से आनेवाले संक्रमित मरीजों को संस्थागत क्वारंटाइन में रखने का परिणाम बेहतर साबित हुआ। चूंकि 80 प्रतिशत मजदूरों के कारण ही संक्रमितों की संख्या बढ़ी, जो स्वाभाविक था। इसलिए लोगों की बेचैनी बढ़ गयी थी कि जिस रफ्तार से यहां मजदूरों का आना जारी है, उससे राज्य में कोरोना बुरी तरह से पसर जायेगा। यह सही है कि प्रवासी श्रमिकों के आने का सिलसिला थमेगा तो संक्रमण का विस्तार भी रूकेगा.

हेमंत सरकार की सूझबूझ से हालात काबू में

विपक्ष भले हेमंत सरकार की आलोचना कर रहे हैं, मुख्यमंत्री ने अपनी सूझबूझ से कमजोर स्वास्थ्य तंत्र के बल पर भी बेहतर प्रदर्शन किया है. 30 जून तक की मियाद पूरी होने के बाद संभव है कोरोना मरीजों की संख्या में और भी गिरावट दर्ज हो।
हालांकि आमजनों की जवाबदेही सरकार से कहीं अधिक है। अपनी जान की सुरक्षा हमारा दायित्व होना चाहिए। आमतौर पर देखा जा रहा है कि बाजार खुलने के बाद लोग लापरवाही बरत रहे हैं। यह जोखिम भरा साबित हो सकता है।

फाइनल इयर के डॉक्टरों की सेवा लेने पर विचार हो!

स्वास्थ्य विभाग के डाॅक्टरों की टीम ने जिस तरह से समर्पण भाव से काम किया है, ये उसी का नतीजा है। कोरोना से पीड़ित स्वस्थ होकर घर पहुंचनेवाले मरीजों ने रिम्स के डाॅक्टरों के प्रति आभार व्यक्त किया है। मरीजों की देखभाल को लेकर भी वैसी शिकायत नहीं आयी है। यह भी अच्छी बात हुई है। हालांकि इसमें लाॅकडाउन का सख्ती से पालन होना भी शामिल है।
बहरहाल, रिम्स के डॉक्टर भी अब थकने लगे हैं. ऐसी हालत में फाइनल इयर के डॉक्टरों को कुछ दिन की ट्रेनिंग देकर कोरोना की जंग के लिए तैयार किया जा सकता है. सरकार को इस पर जल्द विचार करना चाहिए.