गुजरात की गोल्डमेडलिस्ट और ब्रांड अंबेसडकर सरिता सर पर पानी ढोकर लाने को मजबूर

नारायण विश्वकर्मा संपादक

बेहद गरीबी में जीवन गुजारनेवाली डांग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर गोल्ड मेडलिस्ट धाविका सरिता गायकवाड को सर पर पानी ढोकर लाते देख कोई भी चकरा सकता है. गुजरात माॅडल राज्य का विश्व भर में डंका बजा है। उसे माॅडल का डंका पीट-पीट कर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। सरिता गुजरात सरकार के पोषण अभियान की ब्रांड अंबेसडर है. सरिता एक किलोमीटर पैदल चलकर अपनी सहेलियों के साथ एक कुएं से पानी लेने जाती है, जबकि सरकारी योजना के तहत जल शक्ति योजना चलायी जा रही है. अभी हाल में मोदी जी ने जल जीवन मिशन का एलान किया है. इस मिशन के तहत गरीब के घरों तक पाइप लाइन के जरिये पानी पहुंचाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। उस राज्य की ब्रांड अंबेसडकर की ये दुर्गति वाकई हैरान और परेशान करनेवाला है। हालांकि इस खबर को एक दैनिक अखबार में छोटी सी जगह मिली है।


ये तस्वीर गुजरात केे चेरापूंजी कहलाने वाले आदिवासी बहुल डांग के कराडीआंबा गांव की है, जो गर्मी के दिनों में भारी जलसंकट की चपेट में है।
कराडीआंबा गोल्डगर्ल और अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गोल्डेन विजेता सरिता 2018 के एशियाई खेलों की गोल्ड मेडल विजेता और गुजरात सरकार के पोषण अभियान की ब्रांड अंबेसडकर है। डांग में हर मानसून में 100 ईंच से अधिक बारिश होती है। इसके बावजूद पेयजल संकट इतना गहरा है कि सरिता गायकवाड तमाम ग्रामीणों को पेयजल के जुगाड़ के लिए एक किलोमीटर दूर कुएं से पानी लाने जाना पड़ता है।
दो साल पूर्व गरीबी में नंगे पांव दौड़ने वाली सरिता अब मामूली गर्ल नहीं है। गोल्ड मेडल विजेता सरिता करोड़पति है। खेत में काम करनेवाले मजदूर की बेटी सरिता कभी नंगे पांव दौड़ा करती थी। वे गुजरात के डांग जिले की रहनेवाली है, जहां ज्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं।


गुजरात सरकार बतौर इनाम उसे 1 करोड़ रुपये दे चुकी है, जबकि जिस यूनिवर्सिटी में सरिता पढ़ा करती थी, उसके वाइस चांसलर शिवेंद्र गुप्ता ने भी सरिता को 2 लाख रुपये दिये हैं।
गरीबी में सरिता की ये हालत थी कि उसके पास दौड़ने के लिए स्पेशल जूते भी नहीं हुआ करते थे, और जब वो स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी, तो नंगे पैर ही दौड़ जाया करती थी। गरीब परिवार में जन्मी सरिता के पिता लक्ष्मण भाई एक खेतिहर मजदूर हैं।


बहरहाल, दो साल से अंबेसडर रहने के बावजूद सरिता ने अपने गांव में पेयजलापूर्ति के लिए क्यों कुछ नहीं कर पायी, यह कहना मुश्किल है।